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Tuesday, August 4, 2015

साया

याद हैं – अभी भी याद हैं
शदीद गर्मी के वह दिन

चढ़ते हुए वादियों में आए थे तुम
अलसाते हुए साये में देखा दूर उफ़ुक
पोछा माथे का पसीना और दूर कि गर्दे सफ़र

याद करता हूँ – नदी-सा तुम्हारा सफ़र
और, मेरा साहिल-सा जीवन – एक साथ याद करता हूँ !

Wednesday, December 25, 2013

लड़ाकु का रुमाल (लडाकुको रुमाल)

- रमेश क्षितिज
(हिन्दी भावानुवाद: राजकुमार श्रेष्ठ)

 स्वेच्छिक अवकाश लिए घर लौट रहा पूर्व लड़ाकु
भूल गया है रास्ते से सटा हुआ झोपड़ी-सी चाय की दूकान पे
पसीना पोंछकर रखा रुमाल

जाने किस ख़याल में था वो
और भूल गया अश्कों के अल्फ़ाज से लिपिबद्ध किए हुए
अनेक कहानियों का एक संग्रह जैसा
बूंद-बूंद पसीने से भीगा हुआ
कोई गम्भीर तेलचित्र-सा

Sunday, December 8, 2013

At dusk (साँझपख)

- Ramesh Kshitij
(Translated by Hari Adhikari)

At dusk
A gloomy face is sitting on the window
Watching the setting sun
And the east-west path which goes fading slowly,
A young boy
Playing his flute
Is climbing up a hill trail
A deserted young desperate fellow
Sifting on the bank of a still lake
Is watching the sun's young rays
Into the water
And is reminiscing the old days
At dusk.

एक कविता सिल्विया के नाम (एउटा निजी कविता सिल्भियाको नाममा)

- रमेश क्षितिज
घर लौटता आदमी – (घर फर्किरहेको मानिस)
हिन्दी भावानुवाद:  राजकुमार श्रेष्ठ

जीवन तो कैसे भी हो गुजरता ही है
किसी के प्रेम में जैसे अभाव और वियोग में भी
कितनी ही ठंडिया आई
यादों की नरम धुप तापकर बैठे रहा
और कितने ही चैत के आँधियों में
सुके पत्ते की तरह उड़ता रहा मन

झड़ी फटे दिन – बर्खान्त में सुखाया
तुमने तोहफ़े में भेँट की 
विश्वप्रसिद्ध व्यक्तियों की आत्मकथाओं से भरि पुस्तकें
और जन्मदिन के तोहफ़े में भेँट किये कपड़ें

Wednesday, November 27, 2013

फ़ोन पे रो रही लड़की

रात में
दूसरी ओर फ़ोन पे रो रही है एक लड़की
याद करता हूँ उसके मुस्कुराते आँखे
उजाला चेहरा और उसकी गहरी भावुकता
और जिन्हे उसने चाहा उनसे मिले आघात

अनायास हवा में लहराते हैं हाथ
जैसे की ( मैं पोंछ रहा हूँ उसके आँसु
दूर बहुत दूर से

Monday, November 25, 2013

एक चीज़

वैसे तो बहुत कुछ है पृथ्वी में
यह घूमते रहते पर्यटक जैसे सूरज
मृदु मुस्कान सा उसका सुबह

यह बूढ़े पर्वत और उनके शालीन गम्भीरता
यह तरुण दरिया और उनके मादक चंचलता
चोटियाँ और चबूतरें
साफ़ रुमाल जैसा सुबह का नीला आसमान
और साँझ में कालिगढ़ी से तारें

युद्धग्रस्त शहर में

प्रेम वर्जित है इस शहर में
निषेधित है मुस्कान

चलते चलते लग सकता है छाती में संगीन
या सिर पे गिर सकता है तुलबम
हथियारबन्ध आए कुछ अज्ञात समूह
कर सकते है अपहरण घर के भीतर से
या बाल हिलाकर जा सकता है बन्दुक की गोली