रात में
दूसरी ओर फ़ोन पे रो रही है एक लड़की
याद करता हूँ उसके मुस्कुराते आँखे
उजाला चेहरा और उसकी गहरी भावुकता
और जिन्हे उसने चाहा उनसे मिले आघात
अनायास हवा में लहराते हैं हाथ
जैसे की ( मैं पोंछ रहा हूँ उसके आँसु
दूर बहुत दूर से
हमने तस्वीरें खींचे निशानी के तौर पे
बदलें छोटे छोटे उपहार और अपनी अपनी कहानियाँ
फिर बिदाई में हिलाते हुवे हाथ आत्मीयता से
हमने कहा ( मुलाक़ात होगी एक दिन
जरूर मुलाक़ात होगी ।।।
कहती हे रोते रोते – लगातार हो रही है बारिश
रो रहा है आसमान
यादें बरसते हैं इस बारिश में
और छाती में बेचैनियाँ लेती है जन्म
किसी की गुमाने का दर्द,किसी को याद करने का दर्द
नहीं समझ पाता उसके एक एक शब्दों को
पर समझता हूँ भाषा रोने का और वो वाक्य आत्मीयता का
“फिर तुमसे मिल पाऊँगी की नहीं”
दूसरी ओर, फ़ोन पे रो रही है एक निर्दोष लड़की
इधर चौड़े से किसी काठ जैसे छाती में
चल रहा है
धारिला दराँती
रमेश क्षितिज
घर लौटता आदमी – (घर फर्किरहेको मानिस)
("फोनमा रोईरहेकी केटी" को हिन्दी अनुवाद, अनुवादकः राजकुमार श्रेष्ठ)
दूसरी ओर फ़ोन पे रो रही है एक लड़की
याद करता हूँ उसके मुस्कुराते आँखे
उजाला चेहरा और उसकी गहरी भावुकता
और जिन्हे उसने चाहा उनसे मिले आघात
अनायास हवा में लहराते हैं हाथ
जैसे की ( मैं पोंछ रहा हूँ उसके आँसु
दूर बहुत दूर से
हमने तस्वीरें खींचे निशानी के तौर पे
बदलें छोटे छोटे उपहार और अपनी अपनी कहानियाँ
फिर बिदाई में हिलाते हुवे हाथ आत्मीयता से
हमने कहा ( मुलाक़ात होगी एक दिन
जरूर मुलाक़ात होगी ।।।
कहती हे रोते रोते – लगातार हो रही है बारिश
रो रहा है आसमान
यादें बरसते हैं इस बारिश में
और छाती में बेचैनियाँ लेती है जन्म
किसी की गुमाने का दर्द,किसी को याद करने का दर्द
नहीं समझ पाता उसके एक एक शब्दों को
पर समझता हूँ भाषा रोने का और वो वाक्य आत्मीयता का
“फिर तुमसे मिल पाऊँगी की नहीं”
दूसरी ओर, फ़ोन पे रो रही है एक निर्दोष लड़की
इधर चौड़े से किसी काठ जैसे छाती में
चल रहा है
धारिला दराँती
रमेश क्षितिज
घर लौटता आदमी – (घर फर्किरहेको मानिस)
("फोनमा रोईरहेकी केटी" को हिन्दी अनुवाद, अनुवादकः राजकुमार श्रेष्ठ)
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