Monday, November 25, 2013

युद्धग्रस्त शहर में

प्रेम वर्जित है इस शहर में
निषेधित है मुस्कान

चलते चलते लग सकता है छाती में संगीन
या सिर पे गिर सकता है तुलबम
हथियारबन्ध आए कुछ अज्ञात समूह
कर सकते है अपहरण घर के भीतर से
या बाल हिलाकर जा सकता है बन्दुक की गोली

थोड़ी देर पहले झंडे की तरह हवा में लहराता
ट्राफ़िक समय का हाथ
थम चूका है इस वक़्त
और जीवन के सुनसान राजमार्गों में केवल
रात के कुत्तों की तरह रोते दौड़ रहे है साइरन

ऐसे हालात में जाना है मुझे डाकघर
और ले आना है
दूर से मेरे प्रियतमा ने भिजवाया
जन्मदिन का शुभकामना कार्ड

घर लौटता आदमी – (घर फर्किरहेको मानिस)

(कवि रमेश क्षितिजको कविता "युद्धग्रस्त शहरमा" (घर फर्किरहेको मानिस) राजकुमार श्रेष्ठले गर्नुभएको हिन्दी भावानुवाद)

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