Monday, November 25, 2013

एक चीज़

वैसे तो बहुत कुछ है पृथ्वी में
यह घूमते रहते पर्यटक जैसे सूरज
मृदु मुस्कान सा उसका सुबह

यह बूढ़े पर्वत और उनके शालीन गम्भीरता
यह तरुण दरिया और उनके मादक चंचलता
चोटियाँ और चबूतरें
साफ़ रुमाल जैसा सुबह का नीला आसमान
और साँझ में कालिगढ़ी से तारें



हाँ,बहुत कुछ है पृथ्वी में
यह स्वतंत्र पक्षियाँ और पात फडफडाते वृक्ष
प्रेमपूर्वक बजाय गए वायोलिन के धुन और मिठी यादें

प्रिय अतीत और उजाला भविष्य
अनन्त फैले रास्तें और सुखद यात्राएं है पृथ्वी में
और हैं बड़े-बड़े पुस्तकालय और पुरातात्विक दरबार

और भी बहुत कुछ है
फिर भी एक चीज़
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं है पृथ्वी में

रमेश क्षितिज
घर लौटता आदमी – (घर फर्किरहेको मानिस)

(कवि रमेश क्षितिजको कविता "एक थोक" (घर फर्किरहेको मानिस) राजकुमार श्रेष्ठले गर्नुभएको हिन्दी भावानुवाद)

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